वसुधैव कुटुम्बकम्
यह मेरा हिंदी भाषा में लिखा हुआ प्रथम पोस्ट है। कई वर्षों से यह ब्लॉग लिख रहा हूँ। कई बार इच्छा हुई की हिंदी में लिखूं। किन्तु बहुत अड़चनें प्रतीत होती थीं। कंप्यूटर पर हिंदी में लिखें तो कैसे लिखें? अब हिंदी भाषा का दिनोदिन कम प्रयोग होने के कारण उसपर समुचित निपुणता भी कम हो गयी थी! लेकिन पिछले दिनों कई उत्साहवर्धक परिस्थितियां आईं| अब मोबाइल फोन पर हिंदी लिखना बहुत सरल हो गया है। इंटरनेट पर उपलब्ध हिंदी में रचित सामग्री में काफी बढ़ोतरी हुई है| इसलिए आज मैंने ठान लिया की कुछ न कुछ तो हिंदी में ज़रूर पोस्ट करूँ। लेकिन क्या?
तभी मेरे मन में बचपन का याद किया हुआ संस्कृत वाक्य याद आया ...वसुधैव कुटुम्बकम्! और आज न जाने क्यों इसका भावार्थ भी स्वतः ही समझ में आ गया! वसुधा यानि पृथ्वी ही एक परिवार है! इससे सरल और सत्य वाक्य पाना मुश्किल है। बचपन में यह इतना सरल न था। शायद उस समय दुनिया की तेज़ी से बदलती हुई परिस्थिति से अनभिज्ञ था। आज तो जिस रफ़्तार से जागतिक विषयों से हमारा परिचय हो जाता है ..उतने समय में तो शायद अपने कई कुटुंब जनों का समाचार नहीं मिल पाता! आज यह बात शत प्रतिशत सत्य प्रतीत होती है की जगत में चाहे कहीं भी कुछ भी क्यों न घटा हो उसका सीधा प्रभाव हम पर पड़ जाता है। और जब हम यह सोचते हैं की इस पूरे ब्रह्माण्ड में अभी तक सिर्फ पृथ्वी ही एक ऐसा गृह है जहां जीवन की सृष्टि के प्रमाण मिलें है तो सारे पृथ्वी जन एक ही परिवार के तो हुए! फिर कलह क्यों? माना की एक परिवार में झगड़े तो होते हैं लेकिन आधुनिक मानव ने कटुता और शत्रुता के जितने आयाम ढूंढें है वह निश्चित ही निराशाजनक है। तात्पर्य यह है की आज इस सरल साधारण संस्कृत वाक्य- वसुधैव कुटुम्बकम् का अभिप्राय हम सभी पृथ्वी वासियों को गहराई से समझने की ज़रूरत है!
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