शब्दों को समझने की चेष्टा मत करो!
शब्दों को समझने की चेष्टा मत करो!
शब्द भ्रामक हैं।
शब्द वो गहन काला अंधेरा हैं जो कि स्याही बन कर पन्ने के कुछ हिस्सों से उजाले को हटा देते हैं। और प्रकाश को हटा के ही अपना अस्तित्व पाते हैं । शब्द वो हलाहल है जिसको सफ़ेद पन्ने का अविनाशी प्रकाश समेटे हैं।
समझना है तो उस उजाले को समझो जो शब्दों के इर्द गिर्द घूमते हैं और शब्दों के काले साये को लपेटे हैं।
वह अस्तित्वहीन, अनिश्चित और शाश्वत हैं।
सूक्ष्म हैं किंतु सर्वव्यापी हैं।
सुलभ भी है और मार्मिक भी।
निरर्थक शब्दों की जटिलता को काट के जो सार्थक सार उसके अनिश्चित व्योम में व्याप्त है उसे ढूँढो।
शब्दों को समझने की चेष्टा मत करो!
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