अश्वत्थामा हतः इति! नरोवा कुंजरोवा!!
मुझसे किसी ने कहा, "आप थोड़ा buyable झूठ बोलिये!"
इस वाक्य ने मुझे सत्य और मिथ्या के बारे में विचार करने के लिये प्रेरित किया।
मिथ्या अथवा जिसे साधारण भाषा में झूठ कहते हैं आखिर क्या है? हम सभी को पता है कि झूठ क्या होता है, लेकिन इसकी परिभाषा ढूंढना कठिन ही नहीं असम्भव है! इसलिए मैं इस ब्लॉग पोस्ट में परिभाषाओं से परे, मिथ्या के विषय में कुछ कहना चाहता हूँ। शायद जो भी सत्य नहीं वह मिथ्या है। लेकिन यह इतना आसान है क्या? क्या मेरा सच किसी और के लिए मिथ्या हो सकता है? या किसी और का सच मेरे लिये मिथ्या?
भारत के इतिहास और संस्कृति में सत्य और उसकी खोज को बहुत महत्व दिया गया है। राजा हरिश्चंद्र से ले के महात्मा गांधी तक सत्य के अन्वेषण में भारतीय महापुरुषों का तांता बन्धा हुआ है। इस श्रेणी में सम्भवतः अग्रगणी व्यक्तित्व महाभारत के नायक, युधिष्ठिर का है। ऐसी व्याख्या है कि युधिष्ठिर सत्य पर सदैव डटे रहे। किन्तु एक बार महाभारत के इस महानायक ने भी मिथ्या का सहारा लिया। जब गुरु द्रोणाचार्य कौरवों के पक्ष से युद्ध कर रहे थे तो पांडव सेना का उन्होंने भयंकर संहार किया। कोई भी योद्धा उनके सामने टिक नहीं पाया। गुरु द्रोण को अपना पुत्र, अश्वत्थामा बहुत प्रिय था। अश्वत्थामा को अपने पिता की तपस्या फलस्वरूप चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त था। मतलब - वह अमर था। कुरुक्षेत्र के युद्ध में गुरु द्रोण को जब कोई न रोक सका तब श्रीकृष्ण ने एक तरकीब अपनाई। उन्हें पता था कि गुरु द्रोण को अगर अश्वत्थामा की मृत्यु का समाचार पहुंचाया जाए तो वो पुत्रमोह में अपने अस्त्र त्याग देंगे और तब उनका वध आसानी से किया जा सकता था। लेकिन इसमें एक कठिनाई थी - अश्वत्थामा तो अमर था! तो श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर को कहा कि वो यह झूठा समाचार गुरु द्रोण को दें - जिससे कि वह इस घोर असत्य पर भी विश्वास कर लें क्योंकि ऐसा सदैव सत्य बोलने वाले युधिष्ठिर कह रहे हैं! युधिष्ठिर ने मना कर दिया। तत्पश्चात श्रीकृष्ण ने भीम से अश्वत्थामा नामक हाथी का वध करने के लिए कहा। यधिष्ठिर जो सत्य के उपासक थे वो अब अश्वत्थामा (नर नहीं पशु) की मृत्यु का समाचार गुरु द्रोण को देने के लिये मान गए। आखिर इस मिथ्या से उनकी विजय जो सुनिश्चित होती थी!लेकिन कहीं उनके मन में हिचकिचाहट हुई। उन्होंने अश्वत्थामा मर गया! के आगे अपना देवत्व बचाने के लिये, दबे शब्दों में, "नरोवा कुंजरोवा" अर्थात "नर नहीं पशु" जोड़ दिया! अन्तर्यामी महा प्रभु श्रीकृष्ण को यह ज्ञात था! इसलिये उन्होंने उसी समय अपना पांचजन्य शंख बजा दिया जिससे कि गुरु द्रोण को यह दूसरा वाक्य सुनाई ही नहीं पड़ा!
यह कहानी हम सभी को बचपन से किसी न किसी रूप में ज़रूर सुनाई गई होगी। महाभारत की अन्य विविध प्रसंगों के तरह इस प्रसंग में भी सही या गलत, सत्य अथवा मिथ्या का फैसला करना आसान नही है। और यही द्वंद्व आधुनिक जीवन के विभिन्न आयामों में भी व्याप्त है।
यह प्रसंग सुनने के बाद मेरे मन में भी कई द्वंद्व उतपन्न करने वाले विचार आये। युधिष्ठिर ने अपने गुरु की हत्या के हेतू इतना बड़ा झूठ बोला और वह भी अपने स्वार्थ के लिये तो वह क्या वह भी सभी साधारण मानवों की तरह नहीं हुए? उन्हें धर्मराज का दर्जा देना क्या सिर्फ एक ढोंग नहीं था? और उन्होंने जो अपना देवत्व बचाने के लिये दूसरा वाक्य जो कहा वह तो और भी बड़ा छल था। युधिष्ठिर के मन में भी द्वंद्व रहा होगा! एक तरफ तो युद्ध मे विजयी होने पर इस पृथ्वी का सबसे बड़ा सम्राट बनने की लालसा और दूसरी तरफ छल से गुरु हत्या करने पर नरक वास! हो न हो इसी नरक वास के आतंक से उन्होंने धीमी से आवाज़ में नरोवा कुंजरोवा कहा होगा! इस झांसे से सम्राट बनने की लालसा भी कायम रहेगी और अपना स्वर्ग का आसन भी बरकरार रहेगा!
लेकिन महाभारत में इसे भी न्यायसंगत कहा गया है क्योंकि आखिर यह कोई साधरण युद्ध तो था नही! यह था धर्म युद्ध! और धर्म की रक्षा के लिए बोला गया झूठ भी कोई अधर्म नहीं!
मगर मैं इससे सहमत नहीं हूँ। मुझे तो यह कहानी सुन कर ऐसा प्रतीत हुआ कि युद्धिष्ठर से बड़ा स्वार्थी कोई नहीं था।
तो मिथ्या क्या है? एक वाक्य? आधा वाक्य? या जिस नीयत से वह वाक्य बोला गया है वह? चूंकि हम दूसरों के सिर्फ वाक्य सुन सकते हैं उनकी नीयत नहीं देख सकते, सत्य और मिथ्या की पहचान करना अत्यंत दूभर होता है।
तो मेरी समझ तो यह है कि शायद मिथ्या से बड़ा अपराध स्वार्थ है। तो ऐसा सत्य जो यदि स्वार्थ हेतु कहा जाय तो वह भी परोपकार के लिये बोले गए किसी झूठ से कहीं बड़ा अपराध है! आधुनिक परिपेक्ष्य में सच और झूठ को अलग अलग खाँचों में नहीं रखा जा सकता। इनके बीच की रेखा धूमिल हो चुकी है। इसलिए अपनी समझ के अनुसार और किसी को दुःख ना पहुंचाने वाला मिथ्या सच से बढ़कर है।
Comments
सत्य लिखा है, किसी का सच हमरे लिए मिथ्या, और किसी का झूठ हमारे लिए सच हो सकता है.
समय, माहौल, लोगो को देखकर समझदारी से कहा गया झूठ भी सच के बराबर होता है.
PraGunReads #MyFriendAlexa #Blogchatter
we hallow mindset people, without even knowing iota of things, just comment on someone, just to show our intellect
मेरे विचार में वो जंग, वो विचार विमर्श हार जाना ज्यादा सुखद अहसास की अनुभूति करवाता है, ना कि अपने किसी से असत्य कह कर उसे जीत कर। आखिर क्या कारण है, क्या हासिल होता है एक ऐसे पवित्र रिश्ते में सिर्फ इस लिए असत्य का सहारा लेना जो आपके सिवा आपसे कुछ और नहीं चाहता?
इस पासेज की विशेषताएं:
- गहरी विचारशीलता और नैतिक मूल्यों की समीक्षा
- सत्य और मिथ्या के बीच की रेखा को धूमिल करने की बात
- आधुनिक परिपेक्ष्य में सच और झूठ की व्याख्या
- सरल और प्रभावी भाषा शैली
कुल मिलाकर, यह पासेज पाठकों को सोचने पर मजबूर करता है और नैतिक मूल्यों के बारे में गहराई से विचार करने के लिए प्रेरित करता है।