अद्भुत सिगीरिया
सिंहगीरी या सिगीरिया - श्रीलंका की प्राचीन राजधानी है। यहां से बहुत सारे राजाओं ने राज किया है - कुछ चक्रवर्ती तो कुछ फिसड्डी। कई शताब्दियों तक यह बौद्ध भिक्षुओं के मठ के रूप में भी रही। अगर दंत कथाओं की मानें तो सबसे पहले कुबेर ने इसे अपनी राजधानी बनाई थी। इतने दुर्गम स्थल पर कोई अपनी राजधानी क्यों बनाएगा यह तो चर्चा का विषय है। चारों ओर घने जंगलों से घिरा हुआ है। एक विशाल ऊंची चट्टान जो की अपने आसपास की धरती से तकरीबन २०० मीटर ऊंची है।
सिगीरिया एक बहुत ऊंची चट्टान पर स्थित थी। चट्टान के चारों दिशाओं में आयताकार आकार के सुंदर बगीचे थे। अभी भी उन बगीचों की थोड़ी बहुत झलक दिखाई देती है। इन बगीचों के बीच से होता हुए एक मनोरम रास्ता आपको चट्टान के किनारे तक ले आता है।
अब इस चट्टान पर चढ़ना है - जो की एक दूभर कार्य है। एक संकरी सी घुमावदार सीढ़ी है। धीरे धीरे चढ़िए, नहीं तो सांस फूल जाएगी। रास्ते में थोड़ा विश्राम। यहां एक बहुत चिकनी दीवार है। दर्पण के समान समतल। अग्रेजी नाम है - मिरर वॉल। कहते हैं कि प्राचीन काल में यह इतनी चिकनी थी की उसपर अपना प्रतिबिंब दिखाई दे जाता था। अब तो ऐसा नहीं है लेकिन ज़रूर कहीं कहीं सूर्य की तिरछी किरणें जब पड़ती हैं तो एक चमक सी उठती है। लोगों ने इस दीवार पर कुरेद कुरेद कर काफी कुछ लिखा हुआ है - ऐसी कुछ ग्राफिटी तो लगभग १५०० वर्ष पुरानी है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि इस चिकनी परत के नीचे बहुत भित्ति चित्र उकेरे गए हैं। लेकिन अब हम उन्हें नहीं देख सकते। अब तो इस दीवार को छूना मना है - कहीं रही सही चिकनाहट भी नष्ट न हो जाए!
इस दीवार से ठीक कई फीट ऊपर है सिगीरिया की सबसे अद्भुत धरोहर - कुछ बची हुई चित्रकारी! मनोहर अप्सराएं जो कि हाथों में पुष्प लिए खड़ी हैं। मानो इस इंतजार में की जब नीचे से राजा गुजरेंगे और वो पुष्प वर्षा करेंगी! ये तो हमारी मात्र कल्पना है। इतिहासकार भी एकमत नहीं की इन मनोरम चित्रकलाओं का उद्देश्य क्या था। ऐसा मानना है की इस प्रकार की चित्रकला एक समय में इस पूरी चट्टान के इर्द गिर्द बनाई गई थी। कुछ विशेषज्ञ इसे अजंता की भित्ति चित्रकला का ही एक रूप मानते हैं तो कुछ इसे मूल श्रीलंकाई चित्रकला कहते हैं। जो भी हो इसमें तो कोई द्वंद नहीं की यह चित्र बहुत ही सुंदर हैं!
और फिर थोड़ी दूर और चढ़ने पर आता है सिंह नख या अंग्रेजी में Lions' Claw। यहां इस राजधानी का प्रमुख और एकमात्र द्वार था। जिसके ऊपर सिंह की एक विशालकाय मूर्ति थी। अब तो सिर्फ सिंह के नाखून ही बचे हैं। यहां आपको शांत रहने की हिदायत दी जाती है क्योंकि नजदीक ही मधुमक्खियों के विशाल छत्ते हैं। और उनके कोप से तो स्वयं भगवान भी ना बचा पाएं! अभी अपनी ऊर्जा बचा के रखिए क्योंकि अब इस चट्टान की सबसे संकरी चढ़ाई है - सिंह नखों के बीच से होती हुई। आप हांफते हुए पहुंचते हैं - सिगीरिया!
कभी यहां दो बड़े महल, अनेक बाग बगीचे और जलाशय थे। अब तो बस महलों की नींव की कुछ ईंटें हैं जो की आयतों और चौकोरों में बंटी हुई हैं। चारों ओर का नज़ारा रमणीय है। मीलों तक का दृश्य साफ दिखाई देता है। एक छोर पर सीगिरिया के घने जंगल तो दूसरे पर एक विशाल मानवनिर्मित जलाशय। और बीच बीच में धान के लहलहाते हरे खेत। तेज ठंडी हवा आपके चेहरे पर आती है और इस कठिन चढ़ाई की थकान मिटा देती है।
शायद आप काफी थक गए हैं। थोड़ा बैठ कर इस अद्भुत नजारे पर चिंतन कर लें। याद रहे की जिस संकरी लेकिन मजबूत सीढ़ी से चढ़ के आप आए हैं वो आधुनिक है। पुराने ज़माने में लोग, राजा, प्रजा, महिलाएं, बच्चे, भिक्षु कैसे उपर चढ़ के जाते होंगे इसका सिर्फ अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है। कुछ लोग कहते हैं कि इस चट्टान के भीतर कोई गुप्त सुरंग होगी। लेकिन बहुत शोध करने पर भी उसका कोई नामोनिशान नहीं मिला है। चट्टान पर सीढ़ी के जैसी नक्वाशी कहीं कहीं दिखाई देती है। शायद उन पर कुछ लकड़ी बंधी हो जिसकी सहायता से लोग उपर आते हों। जहां अप्सराओं के चित्र हैं वह तो अत्यन्त दुर्गम है। आज कल आप एक अत्यन्त संकरी घुमावदार सीढ़ी से उनके दर्श कर पाते हैं। यह तो बस अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है की प्राचीन काल में कोई उस गुफा में पहुंचा भी कैसे होगा। और उस पर चित्रकारी भी की होगी।
चलिए बहुत विश्राम हुआ। नीचे उतरना भी कठिन है। और वर्षा भी तेज़ आ रही है। उससे बचने के लिए कोई आश्रय नहीं। आप जब भींगते हुए नीचे उतरते हैं तब आपको ज्ञात होता है - सीगिरिया सचमुच एक अद्भुत रहस्य है। आप इस पर चढ़ तो सकते हैं लेकिन इसको जान नहीं पाएंगे !
Comments
Har ek jagah ka mahatwa,bahut
hi clearly kiya gaya h.
Liked the flow of the post.
👌